रविवार, 25 जुलाई 2010

एक ऐसा गाँव जहां किसी घर में दरवाजे नहीं--यात्रा-3

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चिखली हमारी यात्रा का तकलीफ़देह पड़ाव इसलिए बना कि यहीं से हमारी गोवा जाने की योजना खटाई में पड़ती दिख रही थी। चिखली में गाड़ी की पैट्रोल टंकी फ़ुल कराई और वहीं से गाड़ी नीरज चलाने लगा था। अगर पहले रास्ते पर लगातार चलते रहे तो अभी तक चांदवड़ या नासिक तक पहुंच जाते। लेकिन मोबाईल फ़ोने ने समस्या खड़ी कर दी। यह न होता तो हम सालिगराम जी फ़ोन कैसे लगाते और समस्या में कैसे फ़ंसते? बस फ़ंसना ही था। चिखली से औरंगाबाद तक का रोड़ खराब है इस पर चौड़ीकरण के लिए काम चल रहा है। धीरे-धीरे चलते हुए लगभब 4 बजे औरंगाबाद बायपास तक पहुंचे। नीरज ने अब फ़िर शहर में गाड़ी मुझे थमा दी। वहां से हमने पुछताछ कर पूना वाला रोड़ पकड़ लिया। 


बीबी का मकबरा-औरंगाबाद
यहां पहुंचने पर प्रसिद्ध ताजमहल का प्रतिरुप बीबी का मकबरा दूर से ही दिखता है। औरंगाबाद में बहुत सारे उद्योग हैं। बड़ी बड़ी कम्पनियों ने यहां अपने कारखाने खोल रखे हैं। यहां हवाई अड्डा भी है, जहां यात्री विमान सेवा के विमान लगातार आते जाते रहते हैं। औरगाबाद से बाहर 30 किलो मीटर तक बहुत ही ज्यादा ट्रैफ़िक था। विक्की पिछली सीट पर मजे से आराम ही करता रहा यहां तक के सफ़र में। नीरज ने बताया था कि यह गाड़ी बहुत रफ़ चलाता है। इसलिए उसे अभी तक हमने कार चलाने नहीं दी थी। 30किलोमीटर के बाद हाईवे पर कुछ ट्रैफ़िक कम हुआ। इस हाईवे पर गाड़ियाँ बहुत तेज चलती हैं। 100-120 की स्पीड से कम तो कोई चलता ही नहीं है और हाईवे भी बहुत शानदार है। हमने भी पूरा पंजा दबा रखा था। बीच में कहीं पानी बरसने लगा। तब थोड़ी स्पीड कम की। लगातार चलते रहे। हाईवे पर 76किलोमीटर पर शनि मंदिर का गांव सिंघनापुर है। यहां लगभग पूरे भारत से शनि भक्त आते हैं। हाईवे पर 76किलोमीटर पर  घोड़ा सार गांव  आता है और फ़िर वहीं से सीधे हाथ की तरफ़ एक बड़ा प्रवेशद्वार बना है। जहां से सिंघनापुर 2-3किलोमीटर होगा।


शनिदेव सिंगणापुर
प्रवेशद्वार के पास ही हमें कुछ मोटर सायकिल सवार मिले। उन्होने हमसे मंदिर जाने के विषय में पूछा और हमारे आगे आगे पायलेटिंग करने लगे। मेरी समझ में नहीं आया कि ये इतना स्वागत क्यों कर रहे हैं। रास्ते पर गाँव वालों ने एक नाका बना रखा रखा है। वहां पर 6 रु प्रतिवाहन प्रवेश कर लिया जाता है ग्राम पंचायत के द्वारा। मैने महाराष्ट्र में देखा कि हर 25-30किलोमीटर के बाद एक टोल नाका है। जहां कार से 25 रुपया टोल लिया जाता है, अभी तक हम हजारों रुपए टोल के दे चुके थे। ऐसा हमारे 36 गढ में नहीं है। सिर्फ़ एक टोल भिलाई 4 लाईन का है वहां भी 17रुपए एक तरफ़ के लिए जाते हैं। हम मंदिर पहुंचे तो पता चला कि वे मोटर सायकिल वाले पूजा सामग्री दुकान वाले एजेंट हैं। प्रवेशद्वार से ही ग्राहक पकड़ कर लाते हैं और दुकानदार से अपना कमीशन वसुलते हैं। 

शनिदेव सिंगणापुर
हमें एक एक केसरिया कटिवस्त्र दिया गया। हमने गाड़ी में कपड़े उतार कर रखे। वहां बहुत सारे नल लगे हैं जिसमें कपड़ों सहित भीगना पड़ता है। हम एसी से सीधे निकलते ही भीग लिए जिससे ठंड लगने लगी। दुकानदार ने पूजा सामग्री का मुल्य 151 रु से 351 रुपए तक बताया। जबकि उस पूजा सामग्री में तेल नहीं था, वह अलग से लेना पड़ा। हमने एक लीटर तेल लिया 120 रुपए का। शनि सिंघनापुर में सिर्फ़ तेल ही चढता है। बाकी सामग्री प्रवेश द्वार पर ही चढा दी जाती है। दर्शनार्थियों की लाईन कोई ज्यादा बड़ी नहीं थी। हम शाम की आरती के समय पहुंच गए थे। 

शनिदेव सिंगणापुर
यहां शनि देवता के विग्रह के रुप में एक अनगढ चौरस पत्थर है। जिस पर ही सभी तेल चढाते हैं। अगरबत्ती इत्यादि पास ही धुने में लगा दी जाती है। शनि की पूजा के लिए महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। वे कटघरे के बाहर से ही दर्शन करती हैं। पुरुष और बच्चे ही तेल चढाते हैं और वहाँ पूजा करते हैं। जो बहुत ज्यादा तेल चढाता है। पीपा दो पीपा उसे वहां के पड़े अलग ले जाकर पूजा करवाते हैं। पाव आधा पाव वाले को सीधा ही रास्ता दिखा देते हैं। आधे घंटे में हम वहां से दर्शन करके निकल चुके थे। वापस आकर दुकानदार का हिसाब किया। यहां चोरी नहीं होती किसी के घर में भी दरवाजे नहीं है। इस गांव की आमदनी का एक बड़ा साधन दर्शनार्थियों के आगमन से ही है। इस तरह तीन दिनों के बाद हम किसी एक जगह पहुंचे। नहीं तो दिन रात सिर्फ़ सड़क ही नाप रहे थे।


नीरज और विक्की
शनि सिंघनापुर से दर्शन करके निकलते वक्त घर से फ़ोन आया कि अब 5 दिन हो गए हैं निकले हुए,वापस चले आओ। मैने और नीरज ने सहमति बनाई और वापस औरंगाबाद की ओर शाम 7बजे लगभग निकल पड़े। विक्की ने ड्रायविंग संभाल ली और मै पिछली सीट पर सो गया। दिन रात गाड़ी चलाने के कारण थकान हो चुकी थी। लेटते ही नींद आ गयी। जब मेरी आंख खुली तो देखा की कार एक ढाबे पर दो ट्रालों के बीच में खड़ी हुयी है। नीरज और विक्की ढाबे मे सोए हुए हैं। घड़ी देखने पर पता चला कि साढे तीन बज रहे हैं। मैने उठकर ढाबे में मुंह धोया और चाय पीकर ड्रायविंग सीट संभाल ली। कारंजा वहां से 25किलो मीटर था। मतलब हम औरंगाबाद से निकल कर बहुत दूर आ गए थे। कब औरगाबाद पार हुए मुझे तो पता ही नहीं चला। वापस होते समय मन में था कि शेगांव गजानंन महाराज के भी हो आएं। लेकिन यह रास्ता अकोला नहीं जा रहा था। रास्ता वर्धा की ओर जा रहा था। अकोला जाने के लिए फ़िर 125किलोमीटर जाना पड़ता। 

कारंजा टोल पर मैने रास्ता पूछा तो उन्होने यही बताया। लेकिन वापस जाने की बजाए आगे जाना ही ठीक समझा। वर्धा वाली सड़क पर वाहन कम चल रहे थे। नीरज और विक्की सोए हुए थे अकेले गाड़ी चलाते वक्त भ्रम होता था कि गाड़ी हवा में तैर रही है। आसमान में निकले हुए तारे और क्षितिज पर चमकती हुयी दिन निकलने की समय की रोशनी अजीब ही लग रही थी। जैसे किसी रेगिस्तान में हम जा रहे हैं। जहां कोई आबादी नहीं है, निर्जन बीहड़ स्थान में। कहीं कहीं कोई ट्रक आता हूआ दिख जाता था आधे घंटे में। मैं सोच रहा था कि कहीं अंधेरे में कोई गलत रास्ता तो नहीं पकड़ लिया है। फ़िर मन को सांत्वना देता था कि रास्ता तो है कहीं तो जाकर निकलेगा। गाड़ी में पै्ट्रोल है इसलिए अभी चिंता करने की जरुरत नहीं है। बस इसी उधेड़ बुन में दिन निकल गया। सुबह सुबह सैर के समय वर्धा पहुंच गए। जारी है-आगे पढें।

चित्र गुगल और वेबदुनिया से साभार
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2 टिप्‍पणियां:

  1. मजेदार यात्रा संस्‍मरण भाई साहब.

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  2. अरे, यह तो बड़ा मस्त ब्लाग है..यात्रा करने के साथ-साथ यात्रा वर्णन पढ़ने का भी अलग सुख है. ळेकिन इस ब्लाग को चलाने के लिए तन,मन,धन तीनों लगाना होगा. य़ात्रा वर्णन लिखने के लिए यात्रा तो करनी ही पड़ेगी...!

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