बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

रास्ते में भिखारियों की बाढ---यात्रा--13

सुबह 5 बजे उठकर स्नान पूजा की, बाकी लोग तो कुछ नहीं खाना चाहते थे लेकिन मैने दही और चुड़ा(पोहा) खाया। चलने को तैयार हुए तो पैरों में दर्द होने के कारण चला नहीं जा रहा था। आज की यात्रा अधिक कठिन लग रही थी। हमें सुईया पहाड़ भी पार करना था। जैसे ही मैं दो कदम चला तभी नीनी महाराज ने आवाज दी, मैने मुड़कर देखा तो वे हमारे बगल वाले टेंट में सोए हुए थे। लेकिन हमारे से सम्पर्क नहीं हो सका। उन्होने कहा कि आप लोग चलो हम आ रहे हैं। कल ये लोग हमारे साथ जिलेबिया पहाड़ पर चढते चढते गायब हो गए थे। फ़िर अभी मिले 12 घंटे के बाद। हमने थके हुए कदमों से यात्रा प्रारंभ करके पहाड़ की चढाई चढी। फ़िर जंगल में पहुंच गए, नदी नाले पार करते हुए सुनसान में यात्रा करते रहे। जंगल से बाहर निकल कर एक कस्बे अबरखिया में चाय पी।

यहां पर उमाशंकर किसी की किसी बात का बुरा मान गए। जेब से टिकिट और रुपए निकाल कर फ़ेंक दिए कि अब तुम्हारे साथ नहीं जाउंगा। मैं बस से चला जाउंगा। तुम लोग जाओं। मामला गंभीर हो चुका था। हम चक्कर में फ़ंस चुके थे।मैने उसे बहुत समझाया, सबकी गलतियों की माफ़ी मांग ली, बहुत मिन्नते की,  कहने लगा कि पहले इनको (डॉक्टर बबलु आदि) जाने दो। ये तीनो आगे निकल गए और हम पीछे-पीछे मै, उमाशंकर देवी भाई और नीनी महाराज्। अब हमारा दल दो टुकड़ों में बंट गया था। अलग-अलग चलने लगे।
रास्ते में भिखारियों की बाढ देख कर तो एक बार मुझे लगा कि किसी और दुनिया में आ गया हूँ। तरह तरह के भिखारी, तरह-तरह के कोढी, जिन्हे देख कर जुगुप्सा हो जाए। अगर एक बार उनके कृतिम घावों को देख लें तो तीन दिन खाना नहीं खाया जाए और उबकाई आती रहे। लोगों ने पेशा बना रखा है। रास्ते में कोई शिव, कोई काली, कोई अन्य किसी भगवान का स्वांग भरकर आपके पीछे लग जाएगा। कोई आपके पैरों में पानी की बोतल लेकर पानी डालने लग जाएगा। कोई भीख के लिए मीलों आपके पीछे चले आएगा। सुईया से लेकर इनारावरण तक देखा कि भीख मांगना भी एक कुटीर उद्योग का रुप ले चुका है। इसे मान्यता दे देनी चाहिए और इनकम टैक्स लगा देना चाहिए। यहां से रोज लाखों लोग गुजरते हैं और ये सिर्फ़ एक रुपया मांगते हैं अब आप हिसाब लगा लिजिए कि कितनी आय इनकी हो जाती है। हम लोग तो सावन प्रारंभ होने के पहले ही यात्रा में आ गए थे। सावन के पहले दिन से लोग शुरु होते हैं तब ठीक से रास्ते भर दुकान सज जाती है। जगह-जगह चांपाकल (बोरिंग) लग जाते हैं। सभी सुविधाएं प्रारंभ हो जाती है। हम लोग तीन दिन पहले जाते हैं तब इतनी सुविधाएं प्रारंभ नहीं हुई रहती।

हम लोगों ने दोपहर का खाना इनारावरण में और रात्रि का विश्राम टनटनिया में तय किया। हम लोग चल पड़े 15 किलो मीटर के बाद काफ़ी धूप निकल आई थी, उपर से सूरज और नीचे जांघ की चमड़ी छिल जाने से बड़ी तकलीफ़ हो रही थी। चला नहीं जा रहा था। मैने जांघ में नारियल तेल लगाया और यात्रा आरंभ की। हम सब साथ चल रहे थे आगे और पीछे। इनरावरण तक बहुत गर्मी बढ गई थी पैदल चलना मुस्किल हो गया था। मैं धीरे धीरे चल रहा था। पैर के तलुओं को रेत की गर्मी झुलसा रही थी। इनरावरण बड़ा कस्बा है और सड़क दोनो किनारों पर बसा हुआ है। बस एक अदद छांह की तलाश थी सिर छुपाने को और कुछ भोजन चाहिए था खाने को। हम जगह तलाश करते हुए कस्बे से बाहर निकल आए।
फ़िर एक बड़ी धर्मशाला नजर आई और वहां बैठे हुए नीनी भाई दिखे। मेरी जान में जान आई और कदम घसीटते हुए उनके पास पहुंच गया। मुझे बहुत जोर से भूख लग रही थी और हाईपोग्लासिमिया जैसी स्थिति में पहुंच चुका था। वहीं फ़व्वारे की मुंडेर पर ही लेट गया। मैने नीनी भाई से निवेदन किया कि जल्दी से दो आम ला दें। वे उठे और सामने दुकान से दो आम लेकर आए। आम खाने के बाद काफ़ी शान्ति महसुस हुई और सोचने समझने की शक्ति आई। तब तक देवी और उमाशंकर भी आ चुके थे। यहां पर कोई रायगढ (छत्तीसगढ) का बनिया भंड़ारा करवा रहा था। आज गुरु पूर्णिमा थी। उन्होने ने हमसे भी प्रसाद का निवेदन किया तो हम लोगों ने वहां प्रसाद ग्रहण करके दो घंटे आराम किया। नींद की एक झपकी आ गयी थी। जब हम उठे तो उन्होने हमे चाय भी पिलाई और हम 5 बजे पुन: तैयार थे आज की यात्रा का दूसरा भाग पूरा करने के लिए।
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