बुधवार, 5 जनवरी 2011

अब चल पड़े केरल की ओर--एक थके हुए युवक से मुलाकात -- केरल यात्रा ---1

उड़ कर केरल की यात्रा तो कई बार की । यहां के कई शहरों को देखा। लेकिन फ़्लाईट से केरल के सौंदर्य का मजा नहीं लिया जा सकता। इसलिए हमने तय किया कि अब ट्रेन के स्लीपर क्लास में सफ़र करना चाहिए। केरल के कोल्लम शहर में वहां के आर्टिसन वेलफ़ेयर कार्पोरेशन के चेयर मेन श्रीमान सरसप्पन जी रहते थे (अब दिवंगत हो गए हैं) उनसे मिलने का कार्यक्रम था और तिरुअनंथपुरम में एक कार्यक्रम में भी शरीक होना था। इस कार्यक्रम का निमंत्रण मुझ तक पहुंचा तो मैने सुमीत को भी केरल यात्रा के लिए तैयार किया। वह तैयार हो गया। बरसात के मौसम में ट्रेन से केरल का सफ़र इतना आनंद दायक होगा मुझे पता नहीं था। लेकिन अंदाजा था कि हरियाली देखने का स्वर्गिक आनंद मिलेगा।

हमने केरल की यात्रा कोचीन एक्सप्रेस से करने की ठान ली। रायपुर में कोचीन(Korba Tiruvananthapuram ) एक्सप्रेस हम रात साढे ग्यारह बजे रायपुर से रवाना हुए। हमारे एक मित्र टी एस कोंडल को दुर्ग से इसी ट्रेन से हमारे साथ चलना था। जब हम ट्रेन में सवार हुए तो 28 तारीख थी और दुर्ग पहुंचे तो 29 तारीख हो चुकी थी। आधा घंटे के फ़र्क से तारीख बदल गयी। ट्रेन की टिकिट लेने में कभी-कभी रात के समय बदलने के कारण बहुत लोचा हो जाता है। इसलिए समय का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। दुर्ग पहुंचने पर कोंडल जी मिल गए। उनके पुत्र ट्रेन में बैठाने आए हुए थे। अब एक सरदार भी हमारे साथ हो गया।

कुछ देर ट्रेन चलने के बाद एक दुबला-पतला 24-25 साल का केरलियन नौजवान नजर आया। उसकी हरकतें कुछ असामान्य थी। कभी अपनी सीट से उतरता था तो कभी डिब्बे में बड़बड़ाता हुआ चलता था। एक कोने से दूसरे कोने तक। मैने सुमीत को उसकी हरकतें बताई तो उसने भी ध्यान दिया। रात को कहीं चलती ट्रेन से गिर गया तो जान से जाएगा। अब हमारा ध्यान उसकी तरफ़ चला गया। सरदार जी अपनी बर्थ पर आराम फ़रमाने लगे। सुमीत ने उस लड़के से बातचीत शुरु की। तो पता चला कि वह इलेक्ट्रिकल इंजिनियर है और चांपा के पावर प्लांट में काम करता है। वर्क लोड अधिक होने के कारण उसे वर्क सिकनेश की बीमारी हो गयी है। उसके दिमाग पर काम का बोझ कुछ अधिक पड़ गया। इसलिए कम्पनी ने उसे रेस्ट करने के लिए छुट्टी दे दी है।

वर्तमान में ऐसे नौजवानों का बहुत शोषण हो रहा है। इंजिनियर और एम बी ए करने वालों की मांग अधिक है। कम्पनियाँ कैम्पस इंटरव्यु करके इन्हे लाखों के पैकेज में नौकरी देती हैं और मां बाप भी खुश हो जाते  हैं कि बेटे की नौकरी अच्छी कम्पनी में लग गयी और तनखा भी अच्छी है। लेकिन उस वेतन के पैकेज से प्रतिभा को बांध कर शोषण किया जाता है। चौबीस घंटो की नौकरी हो जाती है। बस लगातार उसे दौड़ते ही रहना है। अपने काम में खटते ही रहना है। उसकी अपनी जिन्दगी तो जैसे समाप्त ही हो जाती है। कम्पनी का चलता फ़िरता रोबट बन कर रह जाता है। बिना हाड़ मांस का हृदय विहीन नौकर बन जाता है। इससे उसके स्वास्थ्य और मनोमस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है जिससे वह अवसाद की स्थिति तक पहुंच जाता है। इसके बाद कम्पनियां उसे निकाल बाहर करती हैं। एक प्रतिभा का अंत इस तरह हो जाता है। इस नौजवान की स्थिति भी कमोबेश इसी तरह की थी। वर्क सिकनेश का शिकार होकर अपने घर जा रहा था। मैं सोते-सोते भी इसी के बारे में सोच रहा था।

हमारी सुबह बल्हारशाह स्टेशन पर होती है। स्टेशन पर भिखारियों की बाढ है। लेकिन यहां के भिखारी रुपए पैसे नहीं मांगते। ये सिर्फ़ खाने के लिए रोटी मांगते हैं सवारियों से। यह मैने बल्लारशाह में ही आकर देखा। साथ ही इस स्टेशन से ट्रेन में नर जैसी नारियाँ भी चढती हैं। ताली ठोंक कर सवारियों के सर पर सवार हो जाती हैं। बिना कुछ लिए जाती नहीं। ट्रेन के सफ़र में मैने देखा है कि इनको रोकने की हिम्मत कोई टी टी या पुलिस वाला नहीं करता। सवारियों को लुटते हुए देखते रहते हैं। शायद इनका भी कुछ हफ़्ता महीना इनसे बंधा रहता है। तभी इतनी निर्भिकता से ये ट्रेन में सवार हो जाते हैं।

बल्हारशाह से टेन आगे चली, थोड़ी देर बाद वातावरण में अजीब सी दुर्गंध फ़ैल गयी। मैने गन्ध पहचानी क्योंकि एक बार अमलाई भी जा चुका हूँ। यह सिरपुर कागजनगर था। यहां कागज का कारखाना है। जिसके कारण यहां बदबू आ रही थी। आगे रामागुंडम आने वाला था। इस मार्ग पर मैं खाना रामगुंडम में लेता हूँ। क्योंकि पत्तल में अरवा चावल के साथ रसम, सांभर, छाछ और सब्जी के अचार के साथ अच्छा खाना मिल जाता है। रामागुंडम में हमने खाना लि्या और खिड़की से नजारे देखते रहे प्रकृति के। बरसात नहीं थी। जुलाई का महीना चल रहा है। वातावरण में उमस भी बहुत थी। बरसात होने से कुछ राहत मिलती। हमारे साथ कोरबा के एस ई सी एल में काम करने वाले त्रिसुर निवासी एक यात्री भी थे। उनका नाम मुझे याद नहीं आ रहा। समय गुजारने के लिए हमने ताश खेलना शुरु किया। कोंड़ल जी भी  आ चुके थे। सुमीत ने उस इंजिनियर लड़के को भी सेट किया। अब हम चार हो चुके थे और बाजी जम गयी।रात ट्रेन चेन्नई पहुंची। रायपुर से चेन्नई के 24 घंटे लगते हैं। चेन्नई में हमने दोसा लिया नारियल चटनी के साथ। बहुमत ने कहा आराम किया जाए।

नोट- कुछ चित्र गुगल से साभार

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