सोमवार, 23 अप्रैल 2012

उतेलिया पैलेस

तेलिया पैलेस का नाम सुनते ही हम तुरत-फ़ुरत उतेलिया की निकल पड़े। मैने सोचा कि राजस्थान के किलों या महलों जैसा ही कुछ होगा। उतेलिया गाँव के चौराहे पर पहुंच कर लोगों से पैलेस का रास्त पूछा। उतेलिया एक गाँव ही नजर आया। हमारे छत्तीसगढ के ग्रामीण अंचल जैसे ही कवेलू के घर और उसी तरह की बसाहट। खेती के औजार लोगों के घर के सामने रखे थे। पशु यहाँ वहाँ सड़क पर बैठे-खड़े थे। येल्लो जी पहुंच गए उतेलिया पैलेस। हमें बताया गया था कि यहाँ एक होटल है और हम पैलेस देखने के साथ दोपहर के खाने का मंसूबा लिए आ पहुंचे। देखने से लगा कि हमारे यहाँ के किसी मालगुजार का रिहायशी बाड़ा है। सामने कवेलू का ऊंचा सा बरामदा है, जिसमें कवेलू लगाने के लिए बांस का उपयोग किया है। कम ऊंचाई का लोहे का दरवाजा दिखा। बरामदे में कुछ ग्रामीण बैठे गपशप मार रहे थे।

गाड़ी की आवाज सुनकर एक बंदा बाहर निकला। मैने पूछा कि उतेलिया पैलेस यही है? उसने हाँ में जवाब देते हुए प्रश्न किया - किससे मिलना है? विनोद भाई ने कहा कि पैलेस देखना  है। बात करते हुए गेट खोल कर हम भीतर प्रवेश कर चुके थे। यह बंदा तो हमें मंगल ग्रह से उतरे एलियन जैसा ही समझ रहा था। तभी एक वृद्ध बाबा आए उन्होने हमें पैलेस के विषय में जानकारी दी। बताया कि इस पैलेस के मालिक ठाकुर अहमदाबाद में रहते हैं। यहां कभी-कभी आते हैं। इसकी मरम्मत करवा के होटल में तब्दील कर रहे हैं। वे हमें पैलेस के भीतर ले गए और सभी जगहों को दिखाया। होटल के लिए कमरे तैयार किए जा रहे हैं, ठेठ गुजराती स्टाईल में इंटिरियर का काम चल रहा है। बड़े-बड़े पीतल के हंडे सज्जा की दृष्टि से रखे हैं।

पूछने पर बाबा ने बताया कि उतेलिया स्टेट में 12 गांव आते हैं। मैने इतनी छोटी स्टेट नहीं देखी थी। हमारे छत्तीसगढ में तो 12 गाँव के मालिक को दीवान कहते हैं। अगर ऐसा ही होता तो हर 12 गाँव पर एक राजा होता। पैलेस के सिंह द्वार पर हार्स पोलो खेलने की स्टीक करीने स्टेंड में लगी थी। पैलेस के बगल में स्थित घुड़साल में दो मरियल घोड़ियाँ भी थी। अगर कोई जवान सवार ही हो गया तो घोड़ी रहेगी या वह खुद, अस्पताल जाना तय। बाबा ने बताया कि यह गुजरात की स्पेशल नस्ल कि घोड़ियाँ हैं। गजब हो गया, अब इससे भी अधिक स्पेशल नस्ल की घोड़ी मिल जाए तो वह कैसी होगी। मुझे सोचने पर मजबूर हो गया। मैं तो एक बार ही घोड़ी पर बैठने की सजा भुगत रहा हूँ, पता नहीं ठाकुर कितने बार भुगतेगें, हा हा हा।

मैने बड़े-बड़े पैलेस और किले देखे हैं, इसलिए इस पैलेस का महत्व कम करके आंक रहा हूँ। लेकिन इसका महत्व इस इलाके में कम नहीं है। उतेलिया पैलेस को देखकर किसी का एक शेर याद आ रहा है इस मौके पर - कल जिसने हजारों की किस्मतें खरीदी थी, आज उसी हवेली के दाम लगने लगे। पैलेस का मुख्य द्वार बुलंदी के साथ खड़ा है। दरवाजे पर गुजरात के सुथारों की परम्परागत कारीगरी दिखाई दे रही है। फ़र्नीचर पर भी बारीक खुदाई का काम दिखाई दिया। मुख्यद्वार पर उतेलिया राज्य का राज चिन्ह लगा हुआ है। पुरानी हवेली अभी भी शान से खड़ी है। हवेली की दो चार फ़ोटो लेकर हमने यहाँ से अहमदाबाद वापसी का विचार बनाया। अब भूख लगने लगी थी और उतेलिया पैलेस में खाने का कोई इंतजाम नहीं था। हम उतेलिया से अहमदाबाद की ओर बढ लिए।

चौराहे पर एक ढाबा नुमा रेस्टोरेंट दिखा दिया। हमने भोजन करने लिए यही गाड़ी लगाई। छाछ के साथ तन्दूर की रोटी, खीर और कोफ़्ते की सब्जी मंगाई। पहले ही इधर के ढाबों के नाम से अनुभव ठीक नहीं रहा। इसलिए थोड़ा डरते-डरते ही खाया। भोजन करके हम अहमदाबाद चल पड़े। शाम 4 बजे हम अहमदाबाद पहुंच गए। अब वापसी की टिकिट बनाने का समय हो चुका था। वैसे गुजरात तो घूमना बहुत था लेकिन मुझे आए 6 दिन हो चुके थे। अब घर जाने का मन हो गया। विनोद भाई से टिकिट बनवाने के लिए कहा और हम पहुंच गए अपने गेस्ट हाऊस में। जब उतेलिया में था तो अल्पना का फ़ोन आया कि उसका कुछ सामान अहमदाबाद में छूट गया है, अगर ले आएं तो ..........। हमने कहा ले आएगें भाई, कांई वांदो नथी। अब इंतजार था अगली सुबह का.......... आगे पढें
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